शनिवार, 31 जनवरी 2009

"सुनहरी धुप "



खुला है आसमां निचे घना है कारवा ,क्यो ?न उन्मुक्त हो घूम आए ?

सुनहरी धुप में पंख अपने फैला आए ?

उडे दूर -दूर तक ,चिंतावो के बादल ख़ुद ही छट जाए|

जीवन के इस क्षण में और नया जीवन कोई जी आए|

हो दूर - दूर तक शान्ति "खुशियों की बगिया में जाए|

बह रही जहाँ अमृत की धारा ,क्यो ?न जन्मो की प्यास बुझा आए ?

अंतस की पीडा वही भुला आए .मिले सूर्य कही मुस्कुराता ,

"शुभप्रभात" उसे भी कह आए |

1 टिप्पणी:

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

शुभप्रभात कहने आया है - मन का टेसू!
मन की बात बताने आया - मन का टेसू!

ख़ुशियों की बगिया में अमृत की धारा है!
रवि की मुस्काहट ने पीड़ा को मारा है!