बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

जन्म से अब तक ....

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हे सृष्टी के रचेता |

क्यों तुम मौन हो ?
तप रही वसुधा -सुधा से,

जानते हो ,तुम कौन हो ?

परिचित हुआ मै "जन्म "से 
मृत्यु मिला सब ओर  से |
अब नयन भीगते नहीं ,
अग्नि दहकती है नीर से |

हे कंठ 

अवरुद्ध हो जा |
टुटा , शिव का प्याला |
विष ही विष  फैला हुआ है |
अब कंठ में बसती है ज्वाला |

अब कहा रखु तुझे ?
ये मेरे पालन,मै हारा |
हर मंदिर के सामने 
बस्ती है अब मधुशाला |

हर चेहरा रंगमंच है ,
प्रकृति ने कहर ये ढाला |
श्वाश -निश्वास बन बहती है 
समय ने खुद पर टाला|