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हे सृष्टी के रचेता |
क्यों तुम मौन हो ?
तप रही वसुधा -सुधा से,
जानते हो ,तुम कौन हो ?
परिचित हुआ मै "जन्म "से
मृत्यु मिला सब ओर से |
अब नयन भीगते नहीं ,
अग्नि दहकती है नीर से |
हे कंठ
अवरुद्ध हो जा |
टुटा , शिव का प्याला |
विष ही विष फैला हुआ है |
अब कंठ में बसती है ज्वाला |
अब कहा रखु तुझे ?
ये मेरे पालन,मै हारा |
हर मंदिर के सामने
बस्ती है अब मधुशाला |
हर चेहरा रंगमंच है ,
प्रकृति ने कहर ये ढाला |
श्वाश -निश्वास बन बहती है
समय ने खुद पर टाला|