शुक्रवार, 13 मार्च 2009

"तन्हां "




" कुछ इस तरह से तनहा बैठती हूँ ,"जिन्दगी "तुम्हे लेकर बहुत सोचती हूँ|



है घिरा पानी चारो ओर,परछाईयो से कुछ अनसुलझे "सवाल "पूछती हूँ|


है सब कुछ शास्वत तो 'सत्य 'क्या है ?तुमसे खुबसूरत तो तुम्हार 'अक्स 'देखती हूँ|


जब तक कल्पना में जिया तुम्हे 'खुश थी 'आज पा लिया तो सब कुछ 'मौन देखती हूँ |"




1 टिप्पणी:

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

अच्छा लिखने की अच्छी कोशिश है!

वर्तनी-सुधार की ओर भी ध्यान दीजिए!