" कुछ इस तरह से तनहा बैठती हूँ ,"जिन्दगी "तुम्हे लेकर बहुत सोचती हूँ|
है घिरा पानी चारो ओर,परछाईयो से कुछ अनसुलझे "सवाल "पूछती हूँ|
है सब कुछ शास्वत तो 'सत्य 'क्या है ?तुमसे खुबसूरत तो तुम्हार 'अक्स 'देखती हूँ|
जब तक कल्पना में जिया तुम्हे 'खुश थी 'आज पा लिया तो सब कुछ 'मौन देखती हूँ |"
1 टिप्पणी:
अच्छा लिखने की अच्छी कोशिश है!
वर्तनी-सुधार की ओर भी ध्यान दीजिए!
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