srijan
ek sapna ?jo satya ho jaye.
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
"नील "
" "
"थक कर लौट रहे पंछी सारे ,आधा निकला चाँद, तारे|
ढ
ल
रहा आसमान भी ,गहरे रंग " नीले " से सब हारे|
रात
का भय "चाँद"को भी है , पर सब कुदरत के है मारे "|
1 टिप्पणी:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ने कहा…
बहुत सुन्दर रचना है।
आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
27 अक्टूबर 2009 को 9:19 am बजे
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बहुत सुन्दर रचना है।
आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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